आज कुरुक्षेत्र स्थित निजी कार्यालय में पत्रकारों को संबोधित करते हुए पंडित जी फाउंडेशन स्वावलंबी संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष संदीप कौशिक ने ...
आज कुरुक्षेत्र स्थित निजी कार्यालय में पत्रकारों को संबोधित करते हुए पंडित जी फाउंडेशन स्वावलंबी संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष संदीप कौशिक ने बताया कि कुछ राजनीतिक लोग अपनी निजी राजनीतिक स्वार्थ में भारत की संस्कृति, संस्कारों और धर्म के प्रचार प्रसार के लिए कार्य करने वाले सम्मानित ब्राह्मणों को कटाक्ष कर अपमानित कर रहे है! कभी मनुस्मृति के नाम पर ब्राह्मणों को कोसा जाता है, तो फिर यह लोग कौन थे ? भारत के इतिहास में कई ब्राह्मण महापुरुष हुए हैं जिन्होंने दलितों और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए काम किया और जाति-भेद को चुनौती दी।
सबसे पहले राजा राममोहन राय का नाम आता है। वे ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे, लेकिन उन्होंने जातिवाद का विरोध किया, स्त्रियों और निचली जातियों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई, और शिक्षा को सबके लिए जरूरी बताया।
इसके बाद ईश्वर चंद्र विद्यासागर भी ब्राह्मण परिवार से थे। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह का कानून बनवाया और समाज में दबे-कुचले वर्गों को शिक्षा दिलाने का काम किया। उनका मानना था कि अगर शिक्षा सबके पास होगी, तो समाज में बराबरी आएगी।
स्वामी विवेकानंद ने भी गरीबों और दलितों की सेवा को ही सच्चा धर्म बताया। वे खुद ब्राह्मण परिवार से थे, लेकिन उन्होंने कहा कि गरीब और पिछड़े वर्ग की सेवा करना ही भगवान की पूजा है।
महर्षि दयानंद सरस्वती, जिन्होंने आर्य समाज की स्थापना की, उन्होंने जातिभेद को गलत बताया और दलितों को वेद पढ़ने का अधिकार दिया। वे मानते थे कि जाति जन्म से नहीं, गुण और कर्म से तय होनी चाहिए।
स्वामी श्रद्धानंद ने भी दलितों के लिए शिक्षा और सम्मान दिलाने के लिए काम किया। उन्होंने “शुद्धि आंदोलन” चलाकर दलितों को समाज में बराबरी दिलाने का प्रयास किया।
इसी तरह गोपाल कृष्ण गोखले और बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने भी समाज सुधार के लिए काम किया। गोखले ने शिक्षा और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा दिया, जबकि तिलक ने दलितों के अधिकारों की बात की।
बाद में विनोबा भावे (गांधीजी के करीबी) ने भूदान आंदोलन चलाया और दलितों के लिए जमीन और सम्मान की लड़ाई लड़ी।
भक्ति आंदोलन के कई संतों के गुरु भी ब्राह्मण थे, जैसे कबीरदास के गुरु रामानंद, जिन्होंने जातिभेद को तोड़ा। रामानुजाचार्य ने भी दक्षिण भारत में जाति की दीवारें गिराने का प्रयास किया।
कुल मिलाकर, कई ब्राह्मण संतों और समाज-सुधारकों ने जाति व्यवस्था को चुनौती दी और दलितों के लिए शिक्षा, सम्मान और समानता की राह बनाई। ब्राह्मणों को टारगेट करने वालों से अनुरोध है भारत के इतिहास को पूरा पढ़े! सर्व समाज को एक माला में पिरोने वाला और स्वयं को जाति पाती के बंधन से ऊपर उठकर वंचितों के लिए कार्य करने वाले ब्राह्मण समाज को कटाक्ष कर अपमानित न करे!
COMMENTS